♠ વાહ ખૂબ ! ♠

બિરબલે તીર-કામઠાં આપ્યાં. બાદશાહે નિશાન તાક્યું. પણ હઠ ! નિશાન ખાલી ગયું અને પક્ષી ઊડી ગયું.

પ્રશંસા કરવામાં પણ આવડત જોઇએ. એ આવડત હોય એટલે ગાડું ચાલ્યું.

બિરબલ આખો વખત બાદશાહની પ્રશંસા કર્યા કરતો. બાદશાહને ક્યારેક એ ગમતું પણ નહિ. એક વાર તો તેમણે નક્કી કર્યું કે આ મસ્કાબાજ બિરબલનો સીધો જ કરવો.

એકવાર બાદશાહ અને બિરબલ અગાશીમાં હતા. એક પક્ષીને જોઇ બાદશાહ કહે : ''બિરબલ ! હું ધારું તો પેલા દૂરના પક્ષીને જરૃર વીંધી કાઢું. બોલ !''

બિરબલ કહે : 'વાહ ! આપની નિશાનબાજીનું તે શું કહેવું !'

બાદશાહ કહે : 'તો લાવ તીર-કામઠાં.'

બિરબલે તીર-કામઠાં આપ્યાં. બાદશાહે નિશાન તાક્યું. પણ હઠ ! નિશાન ખાલી ગયું અને પક્ષી ઊડી ગયું.

બિરબલ એકદમ બોલી ઊઠયો : 'વાહ ખૂબ ! વાહ ખૂબ !!'
બાદશાહ નારાજ થઇ ગયા. તેઓ કહે : 'નિશાન ખાલી ગયું અને છતાં તું વાહ ખૂબ કરે છે ? ખોટી સ્તુતિ એ અપમાન છે, જાણે છે ને બિરબલ ?'

બિરબલ કહે : 'વાહ ખૂબ !'

બાદશાહે ગુસ્સે થઇ ને કહે : 'બિરબલ !'

બિરબલ હસીને કહે : 'શાંત થાઓ નામદાર ! મેં સ્તુતિ આપની નિશાનબાજીની નથી કરી, આપનામાં રહેલી પક્ષીઓ તરફની દયાની કરી છે. આપનામાં જીવ પ્રત્યે એટલી દયા છે હજૂર કે આપ મારી શકો છો છતાં મારતા નથી. નિશાનબાજી તો આપની અટલ છે વાહ ખૂબ ! પણ અચ્છી નિશાનબાજી વખતે આપનામાં જીવ પ્રત્યે દયા ઊભરાઇ જાય છે માટે જ આપ તેને વીંધતા નથી. વાહ ખૂબ !'

બાદશાહે હસી દીધું. તેઓ કહે : 'બિરબલ ! તને તે કેવી રીતે પકડવો એ જ સમજાતું નથી. જબરો છે તું !'

♠ दिव्य दर्पण ♠

“बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिल्या कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥“

पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करते समय उन्होंने आशीर्वाद के रूप में उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी।

शिष्य उस दिव्य दर्पण को पाकर प्रसन्न हो उठा। उसने परीक्षा लेने की जल्दबाजी में दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी के सामने कर दिया। वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि गुरुजी के हृदय में मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण परिलक्षित हो रहे थे। इससे उसे बड़ा दुख हुआ। वह तो अपने गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित सत्पुरुष समझता था।
दर्पण लेकर वह गुरुकूल से रवाना हो गया। उसने अपने कई मित्रों तथा अन्य परिचितों के सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। सब के हृदय में कोई न कोई दुर्गुण अवश्य दिखाई दिया। और तो और अपने माता व पिता की भी वह दर्पण से परीक्षा करने से नहीं चूका। उनके हृदय में भी कोई न कोई दुर्गुण देखा, तो वह हतप्रभ हो उठा। एक दिन वह दर्पण लेकर फिर गुरुकुल पहुंचा।

उसने गुरुजी से विनम्रतापूर्वक कहा- “गुरुदेव, मैंने आपके दिए दर्पण की मदद से देखा कि सबके दिलों में नाना प्रकार के दोष हैं।“

तब गुरु जी ने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर दिया। शिष्य दंग रह गया. क्योंकि उसके मन के प्रत्येक कोने में राग,द्वेष, अहंकार, क्रोध जैसे दुर्गुण विद्यमान थे।

गुरुजी बोले- “वत्स यह दर्पण मैंने तुम्हें अपने दुर्गुण देखकर जीवन में सुधार लाने के लिए दिया था दूसरों के दुर्गुण देखने के लिए नहीं। जितना समय तुमने दूसरों के दुर्गुण देखने में लगाया उतना समय यदि तुमने स्वयं को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वह दूसरों के दुर्गुण जानने में ज्यादा रुचि रखता है। वह स्वयं को सुधारने के बारे में नहीं सोचता। इस दर्पण की यही सीख है जो तुम नहीं समझ सके।“

♠ વિશ્વાસ ♠


એક ડાકુ હતો એક દિવસ તે સાધુનો વેશ લઈને નીકળ્યો હતો, તેનો ઈરાદો હતો કે સાધુનો વેશ લેવાથી બધાને છેતરીને લૂંટી લેવા જંગલમાં તંબું બાંધીને તેના બધા માણસો સાથે રહેતો. બધો લૂંટનો સામાન તંબુમાં રાખતો હતો.

એક દિવસ તેના માણસો લૂંટ કરવા ગયા હતા. તે સાધુના વેશે તંબુની બહાર બેઠો હતો. ત્યાં એક માણસ દોડતો દોડતો તેની પાસે આવ્યો સાધુના હાથમાં રૃપિયા ભરેલી થેલી મૂકી દીધી. અને કહ્યું.... મહારાજ હું બાજુના ગામમાં રહું છું. વેપારની ઉઘરાણી કરવા હું બીજા ગામ ગયો હતો. રસ્તામાં આ જંગલ આવ્યુું. હું અને મારી સાથેના બીજા વેપારીઓ અહિથી પસાર થતા હતા ત્યારે લૂંટારાઓની ટોળી આવી, બધા ગભરાઈને ભાગવા લાગ્યા, થોડાક વેપારીને લૂંટારુઓએ લૂંટી લીધા, હું ભાગી આવ્યો, લૂંટારુઓ પાછળ જ છે, તમે આ રૃપિયાની થેલી રાખો, હું પછી લઈ જઈશ...

આટલું બોલીને રૃપિયા ભરેલી થેલી મૂકીને તે વેપારી દોડીને જતો રહ્યો. થોડીવાર પછી તે ડાકુના માણસો આવ્યા. અને બધા તંબુમાં જઈને લૂંટનો સામાન જોતા હતાં. ત્યાં પેલો વેપારી આવ્યો સાધુને ન જોયા એટલે તે તંબુમાં ગયો, તંબુમાં બધા લૂટારૃઓ, લૂંટનો સામાન, બંદુુક, તલવારો જોઈને ગભરાઈ ગયો, તે સમજી ગયો કે સાધુ નકલી હતો. તેને થયું કે હવે કંઈ બોલીશ તો રૃપિયાની સાથે જીવ પણ જશે. એટલે તે બોલ્યા વગર ત્યાંથી નીકળ્યો.

એ બહાર જતો હતો ત્યારે પેલા નકલી સાધુએ તેને બોલાવ્યો. અને કહ્યું, અરે ભાઈ તમારી રૃપિયાની થેલી તો લેતા જાવ. વેપારીને નવાઈ લાગી. પણ તે ડાકુએ તેને રૃપિયાની થેલી આપી દીધી. વેપારી નવાઈથી બોલ્યો, 'માફ કરજો... પણ એક સવાલ પૂછયા વિના નહી રહી શકું, તમે બધાને લૂંટીને ધન ભેગુ કરો છો, તો આ તો સામેથી તમારી પાસે આવેલું ધન છે. તે તમે પાછું કેમ આપો છો ?

ડાકુ હસીને બોલ્યો, ભાઈ ડાકુનું કામ ધન લૂંટવાનું છે. પણ તેં એક સાધુ પર વિશ્વાસ કરીને રૃપિયા આપ્યા હતા. તને સાધુ પર વિશ્વાસ હતો. સાધુ પરનો વિશ્વાસ તૂટે. અને પછી તમારી વાત સાંભળીને બધા જ સાધુ પર અવિશ્વાસ કરે. માત્ર સાધુ પરનો તમારો વિશ્વાસ જીતાડવા જ હું તમને આ રૃપિયા પાછા આપુ છું'' વેપારી ખુશ થઈને રૃપિયા લઈને પાછો ગયો.

♦ બોધ - કોઈ તમારા પર વિશ્વાસ મૂકે તો તે
વિશ્વાસ કયારેય ન તોડતા. ♥

♠ द्रौपदी का पुण्य ♠

 
♥ इँसान जैसा करता है कुदरत या भगवान उसे वैसा ही उसे लौटा देता है l ♥

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एक बार द्रौपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी l

साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोके से उड़ पानी मे चली गयी ओर बह गयी l

सँयोगवस साधु ने जो लँगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी l
साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए थोड़ी देर मे सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ जाएगी l साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी मे छिप गया l

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द्रौपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, '' तात मै आपकी परेशानी समझ गयी l इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए l ''

साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया कि '' जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएगे l ''

और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रौपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुचायी तो भगवान ने कहा-कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते मे l

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जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब मे मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ गया था l जिसको चुकता करने भगवान पहुच गये द्रोपदी की मदद करने l दुस्सासन चीर खीचता गया और हजारो गज कपड़ा बढता गया l

♦ इँसान यदि सुकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है ओर दुस्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पड़ता है l ♦

♠ सफलता की कोई उम्र नहीं होती ! ♠


'' हम इसलिए खेलना नहीं छोड़ देते क्योंकि हम बूढ़े हो जाते हैं, हम इसलिए बूढ़े हो जाते हैं क्योंकि हम खेलना छोड़ देते हैं! ''

इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने कार्योँ से अपनी उम्र को पीछे छोड़ दिया। यह बात सच है कि हमारे शरीर के कार्य करने की एक सीमा है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर के कार्य करने की क्षमता घटती जाती है, लेकिन जिन लोगों के हौसले बुलंद होते हैं, जो जीवन में कुछ कर गुजरने की चाह रखते हैं, जिनमें उत्साह – उमँग होता है, जिनकी इच्छाशक्ति व संकल्पशक्ति मजबूत होती है, ऐसे व्यक्तियों के सामने कोई बाधा बड़ी नहीं होती। ऐसे व्यक्ति आत्मविश्वास से भरे हुयें होते है, जो असंभव को भी संभव बना देते है।

युवा किसी आयु अवस्था का नाम नहीं, बल्क़ि शक्ति का नाम है। जिसने अपने मन और आत्मा की शक्ति को जगा लिया, वह ७० वर्ष की आयु में भी युवा है।

बहुत से लोग उम्र बढ़ने के साथ – साथ सोचने लगते हैं कि अब तो हमारी उम्र हो गयी है, “अब हमसे ये सब नहीं हो सकता”। उनकी यही सोच उन्हें निर्बल बना देती है और कुछ कार्य नहीं करने देती। व्यक्ति जितना अपने शरीर से कार्य करता है, उससे कई गुना कार्य वह अपने मन से करता है। यदि मन की शक्तियाँ ही उसकी कमजोर पड़ गई हैं, तो फिर जरूरत है उन्हें जगाने की।

शक्तियों के जागरण से संबंधित एक ऐतिहासिक कथा याद आती है।

एक राजा के पास कई हाथी थे, लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था। समय गुजरता गया और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा। अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे। एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया। उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया। उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है। हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे। जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया। मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ। सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।

आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा। पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया। अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी। हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह – उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।

जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे। कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है।

★ हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी आजादी की लड़ाई 48 साल की उम्र में शुरू की थी और हमें आज़ादी दिलाई।

★ जापान के 105 वर्षीय धावक हिडकीची मियाज़ाकि ने 42.22 सेकण्ड्स में 100 मीटर डैश कम्पलीट कर नया विश्व रिकॉर्ड बनाया।

★ मशहूर अभिनेता बोमन ईरानी ने 44 साल की उम्र में एक्टिंग करना शुरू की।

★ ग्रामीण बैंक के फाउंडर और नोबल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद युनुस ने 43 साल की उम्र में ग्रामीण बैंक की शुरुआत की।

★ अमिताभ बच्चन आज 70 साल से ऊपर होने के बावजूद सबसे सक्रीय बॉलीवुड स्टार्स में से एक हैं।
ऐसे तमाम उदहारण हैं जहाँ लोगों ने साबित किया है कि अगर कुछ कर गुजरने का हौंसला हो तो क्या उम्र और क्या चुनौतियाँ कुछ मायने नहीं रखता ।

→ मित्रों, प्रसिद्ध विचारक जॉन ओ डनह्यू का कहना है

“आप उतने युवा है, जितना आप महसूस करते हैं। अगर आप अंदर के उत्साह को महसूस करना शुरू करेंगे, तो एक ऐसी जवानी महसूस  करेंगे, जिसे कोई भी आपसे छीन नहीं सकता”।

मन में उत्साह हो तो उम्र कभी भी कार्य के मार्ग पर बाधा नहीं बनती। बाधा बनती है तो केवल हमारी नकारात्मक सोच। यदि कार्य करना है तो किसी भी उम्र में कार्य किया जा सकता है, कार्य करने के तरीके बदले जा सकते हैं और पहले की तुलना में अधिक अच्छे ढंग से व कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सकता है।

उम्र के असर को बहुत हद्द तक अपने प्रयासों, सकारात्मक सोच और उत्साह से कम किया जा सकता है, अतः ये कहने से पहले कि हमारी उम्र हो गयी है , हम ये नहीं कर सकते , वो नहीं कर सकते उन तमाम लगों के बारे में सोचिये जिनके लिए age एक number से अधिक कुछ नहीं है। अगर वो कर सकते हैं तो कोई भी कर सकता है, तो चलिए फिर से सपने देखना शुरू करिए, फिर से उनका पीछा कीजिये और एक बार फिर अपने सपनो को साकार कर दीजिये।

धन्यवाद!

♠ નાની ઉંમરે વિલક્ષણ પ્રતિભા ♠

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આજના ઇલેક્ટ્રોનિક યુગમાં આજની પેઢી વિવિધ ક્ષેત્રે ખૂબ આગળ જઇ નાની ઉંમરે સિદ્ધિ મેળવે છે.મોટી ઉંમરનાને આ જોઇ એમ થાય કે, અમારા જમાનામાં આવી સવલતો હોત તો અમે પણ.....

હવે ઇતિહાસ જોઇએ...

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👉🏼 શિવાજી ૧૩ વર્ષે રણનો કિલ્લો જીત્યા હતાં.

👉🏼 સિકંદર ૧૭ વર્ષે એક યુદ્ધ જીત્યો હતો.

👉🏼 અકબરે ૧૬ વર્ષે ગાદી સંભાળી.

👉🏼 અહલ્યાબાઇએ ૧૮ વર્ષની ઉંમરે શાસન સંભાળેલું.

👉🏼 સંત જ્ઞાનેશ્વરે ૧૨ વર્ષની ઉંમરે ગીતા પર 'જ્ઞાનેશ્વરી' ભાષ્ય લખ્યું હતું.

👉🏼 શંકરાચાર્યે ૧૬ વર્ષે શાસ્ત્રાર્થમાં વિજય મેળવ્યો હતો.

👉🏼 રવિન્દ્રનાથ ટાગોરે ૧૪મે વર્ષે 'મેકબેથ'નો અનુવાદ કર્યો હતો.

👉🏼 કવિયિત્રી તારાદત્ત ૧૮ વર્ષે વિખ્યાત બની હતી.

👉🏼 સરોજિની નાયડુએ ૧૩ વર્ષની ઉંમરે તેરસો લિટીની કવિતા રચી સાહિત્યમાં સ્થાન મેળવ્યું હતું.

અને અંતે....

👉🏼 મહાન ક્રિકેટર સચીન તેંડુલકરે ૧૬ વર્ષની ઉંમરે આંતરરાષ્ટ્રીય ક્રિકેટમાં પદાર્પણ કર્યું હતું.

→ વિલક્ષણ પ્રતિભા ધરાવનારને આનુવંશિક સંસ્કારો ઉપરાંત તેમની પુરુષાર્થ પરાયણતા,લગન અને પ્રતિભાને યોગ્ય પોષણ આપનારા ગુણો પણ મળ્યા હતાં.

- પંડિત મિહિર દેવ

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♠ कलयुग का दूष्प्रभाव ♠

  
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एक समय की बात है l श्रीकृष्ण और पाँचो पांडव वन से गुजर रहे थे l थोडी देर के बाद कृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ। मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"

पाँचों भाई वन में गये।

युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड है।
यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।

अर्जुन दूसरी दिशा में गये। वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है
यह भी आश्चर्य है !

भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
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☀सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास के कुओं में पानी है किन्तु बीच का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ गहरा है फिर भी पानी नहीं है।
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☀पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती आती और कितने ही वृक्षों से टकराई पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके। कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
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☀पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-अलग दृश्यों का वर्णन किया।

☀युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"
🌹तब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। ऐसे लोगों का राज्य होगा। इससे तुम पहले राज्य कर लो।
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☀अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
🌹इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाये।
"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।
हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध है ?
चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी।
परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर।
ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरूष होगा।

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☀भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
🌹कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।
बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।
""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....
किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा ?""
इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह माया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा। वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं की अमानत हैं, लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह शरीर मृत्यु की अमानत है।
तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत है ।
तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !
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☀सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के बीच का कुआँ एक दम खाली !
🌹कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर देंगे परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं।
दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।
किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में उनकी रूचि न होगी और जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव होगा।
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☀पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह चट्टान रूक गई।
🌹कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा।
यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से रूकेगा।
किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन होना रूक जायेगा ।

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♠ મહાનતા ♠

 

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આજે વિશ્વ પ્રાણી દિવસ નિમિત્તે પ્રાણીઓના આંતર મનમાં માનવ જાત પ્રત્યે સંવેદના રજુ કરતી એક હ્રદયસ્પર્શી વાર્તા રજું કરું છું મિત્રો..અંત સુધી વાંચજો અને હા ફોરવર્ડ કરવાનું ભૂલશો નહિ.

એ લોકો મને માતા કહીને પૂજે છે, તેમાં તું રાક્ષસ કેમ થયો ? અરે, માતા થવું સહેલું નથી. અમારી જાત અમે ખેડૂતના ખીલે નિચોવી દઈએ છીએ

એક ગામડા ગામમાં એક ખેડૂત પાસે એક ગાય હતી. તેણે એક બચ્ચાને જન્મ આપ્યો. તેનું નામ પાડયું મૂંજડો. હવે આ મૂંજડો મોટો થવા લાગ્યો. ધીમે ધીમે બળદ બન્યો. મુખવટો દોરીથી બનાવી બાંધી દીધો. હવે તેને મોંએ લગામ હોવાથી પહેલાની જેમ મુક્ત ફરી પણ ન શકે.

જ્યારે કોઈ ન હતું ત્યારે આ મૂંજડાએ માંને પૂછ્યું, 'હેં મા, મને આ ખેડૂતે શા માટે આ મોઢું દોરીથી બાંધી દીધું ? મને કેમ તારી જેમ છૂટો નથી રહેવા દેતો ?'

મા કહે, 'જો બેટા, આ ખેડૂત છે એ જગતનો તાત છે. તેમની પાસે જે જમીન છે તે તારે ખાંધે ધૂંસરી નાંખી ખેડવાની છે. ત્યારે તારું મોઢું પહોળુ ન પડે તે માટે તારા મોંએ નાથ નાખવામાં આવી છે.' કહી માએ મૂંજડાને સમજાવ્યો.

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ખેડૂત હવે મૂંજડાને ખેતરે લઈ જવા લાગ્યો. ખેતરમાં હળ ચલાવવા લાગ્યો, પણ મૂંજડો બિનઅનુભવી નવોસવો હોવાથી બરાબર ચાલતો નહોતો. તેથી ખેડૂતે ક્રોધાવેશમાં આવી જઈ એક ચાબૂક ફટકારી તે મૂંજડો એટલો ગભરાઈ ગયો કે ન પૂછો વાત. હવે તો ખેડૂત સહેજ પણ ઈશારો કરે ત્યાં મૂંજડો દોટ દે. દરમિયાન ઘેર આવતા મૂંજડો દોટ દઈ મા પાસે પહોંચી ગયો અને ચોધાર આંસુએ રડતા કહેવા લાગ્યો, 'જો મા મને આજ તો ખેડૂતે દોરડાની ચાબૂક મારી. જો મારા શરીર પર ઊપસી આવી.'

વળી મા કહે, 'હશે બેટા, તે આપણો અને આ જગતનો તાત ગણાય. આપણો માલિક કહેવાય. ક્યારેક ક્રોધમાં આવીને મારે પણ તેથી શું થયું ? વળી તું બરાબર નહીં ચાલતો હો.' આમ વળી શિખામણ આપી શાંત પાડયો.

પરંતુ એક દિવસની ઘટનાથી તો મૂંજડો એટલો ક્રોધાયમાન થયો કે ન પૂછો વાત. જો માએ તેને ન સમજાવ્યો હોત અથવા જો તેની મા ત્યાં ન હોત તો મૂંજડો આ ખેડૂતને મારી પણ નાખત, એમાંય બે મત નહોતો. બન્યું એવું મૂંજડાનાં મોંએ અચાનક માંખ બેઠી. મૂંજડાએ મોં હલાવ્યું. જેથી શિંગડું સહેજ ખેડૂતને અથડાયું. ખેડૂત સમજ્યો કે મને માર્યું. આથી વાંસનો સારો એવો પરોણો (લાકડી) શોધી બળદને ઝૂડવા જ લાગ્યો. ઝૂડવા જ લાગ્યો. વળી મૂંજડાનો ગુસ્સો આસમાને પહોંચ્યો. આથી તેણે પણ સામી દોટ દીધી. ખેડૂતને સામે કાળ દેખાયો હોય તેમ લાકડી મૂકી સીધો ઘરમાં જ ઘૂસી ગયો. તેવામાં ગાય ભાંભરી, તેમની ભાષામાં મૂંજડાને બોલાવી લીધો અને મંડી ઠપકો આપવા, અરે તારી જાતના મૂંજડા, મારું સંતાન થઈ તેં આવું કૃત્ય કર્યું ? એ લોકો મને માતા કહીને પૂજે છે, તેમાં તું રાક્ષસ કેમ થયો ? અરે, માતા થવું સહેલું નથી. અમારી જાત અમે ખેડૂતના ખીલે નિચોવી દઈએ છીએ.

ઘડપણમાં ઘરછોડી ગામો ગામની શેરીઓમાં ભાટકીએ છીએ. તેમને ખાતરરૃપે મળ-મૂત્ર આપીએ છીએ અને છતાંય ક્યારેક ક્રોધાવેશમાં હોય અથવા અણસમજમાં અમને તો એવી ક્રૂરતા આચરે કે બિલકુલ કાપી પણ નાખે છે, ત્યારે મહાનતા મળી છે. જેને માથે તું પાણી ફેરવે છે ? ત્યારે બળદે આટલું જ કહ્યું, 'મા, આવી મોટાઈ ને શું કરવી ?'

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મિત્રો, મુંજડાનો આ પ્રશ્ન ખરેખર આપણે વિચારવો જોઈએ..!! આપણે ઘણા બધા પ્રાણીઓ પાળીએ..!! એમાં પણ ગાય અને બળદ તો અપણા માટે ભગવાનના આર્શિવાદ સમાન છે..!! આપણે એના પર કેટલો ત્રાસ ગુજારીએ!! છતાં તેઓ ક્યારેય પોતાની વ્યથા કહી શકતા નથી..બળદ જ્યાં સુધી કામ આપે ત્યાં સુધી સાચવીએ, પછી તેને રઝળતો છોડી મૂકીએ..અંતે તે કતલખાને જાય છે..!!

ગાયને આપણે માતા કહીને પૂજીએ, પણ ઘણા લોકો ગાય દૂધ આપવાનું બંધ કરે એટલે એને રઝળતી છોડી મૂકે, પછી ભલે તે ભૂખે મરે કે મરી જાય..!! માતાની મહાનતાનું આટલું જ મૂલ્ય..!! આજે તો ગાયોને કતલખાનામાં કાપીને એનું ગૌમાસ વેંચવામા આવે છે..ખરેખર આજે માનવતા મરી પરવારી છે..!!