♠ પરોપકાર એ જ સદાચાર ♠

એક પ્રદેશમાં ત્રણ પર્વતો હતાં.આ પર્વતો પાસે એક મોટી ખાઈ હતી.જેથી લોકો આ પર્વત તરફ જઇ શકતા નહી.એક વખત દેવતાઓને ત્યાંથી નીકળવાનું થયું.તેમણે આ પર્વતોને જોયા અને તેમને કહ્યુ,' અમારે આ ક્ષેત્રનું નામકરણ કરવાનું છે.તમારા ત્રણેયમાંથી કોઇ એક પર્વતનું નામ નિશ્ચિત કરાશે અને તેના નામથી જ આ પ્રદેશ ઓળખાશે.અમે તમારા ત્રણેયની એક - એક ઇચ્છા પુરી કરી શકીએ છીએ.એક વર્ષ બાદ જે પર્વતનો વિકાસ સૌથી વધુ થશે,તેના નામ પરથી જ આ ક્ષેત્રનું નામકરણ કરવામાં આવશે.'

આ સાંભળી પહેલો પર્વત બોલ્યો : 'હું સૌથી ઊંચો પર્વત બની જાઊં.જેથી બધા લોકોને દૂરથી પણ દેખાઇ શકું.'

બીજા પર્વતે દેવતાઓ સમક્ષ પોતાની ઇચ્છા પ્રકટ કરી : ' મને હરિયાળી અને વિવિધ પ્રકારની પ્રાકૃત્તિક સંપદાઓથી ભરપૂર બનાવી દો.'

ત્રીજા પર્વતે દેવતાઓને હાથ જોડીને કહ્યું : ' મારી જે કાંઇ ઊંચાઇ અને કદ છે, તેના દ્વારા આ ખાઇને પૂરીને ત્યાં સમતળ જમીન બનાવી દો.જેથી આ ક્ષેત્ર ઉપજાઉ બની જાય અને અહીં લોકો આવે અને સુખેથી રહી શકે.'

દેવતાઓ ત્રણેયને આશીર્વાદ આપી, 'તથાસ્તુ' કહી ચાલ્યા ગયાં.એક વર્ષ બાદ દેવતાઓ ફરી આ પ્રદેશમાં આવ્યા.તેઓએ જોયું કે પહેલો પર્વત ખૂબ જ ઊંચો થઇ ગયો હતો.,ખૂબ દૂરથી જોઇ શકાતો હતો,પરંતુ ત્યાં કોઇ જઇ શકતું નહોતુ.ઊંચો હોવાના કારણે તેને બીજાઓ કરતા વધું ટાઢ,તાપ,વરસાદ  સહન કરવો પડતો હતો.

બીજો પર્વત પ્રાકૃત્તિક સંપદાઓ અને વૃક્ષોથી ભરપૂર બની ગયો હતો પરંતું એટલું ગીચ જંગલ હતું કે તેમાં કોઇ પ્રવેશી શકતું નહીં.

ત્રીજા પર્વતની જગ્યાએ સપાટ મેદાન હતું,જ્યાં ખેતી થતી હતી,લોકો વસવાટ કરતાં હતાં.દેવતાઓએ આ ત્રીજા પર્વતના નામ પરથી એ પ્રદેશનું નામકરણ કર્યું,જેણે પોતાના નજીકના ક્ષેત્રને પણ ઉપયોગી બનાવી દીધો હતો.

પોતાની યોગ્યતા તથા ધનને બીજાના ઉપયોગમાં લાવનાર વ્યક્તિ જ ઉપયોગી વ્યક્તિ છે.પરહિત માટે સંપદાનો વપરાશ જ ખરો ઉપયોગ છે.

♠ ध्यान और मौन ♠

एक व्‍यक्‍ति जिज्ञासाएं लेकर  एक दिन भगवान बुद्ध के पास आया। उसका नाम था मौलुंकपुत्र, एक बड़ा ब्राह्मण विद्वान, अपने पाँच सौ शिष्‍यों के साथ आया था। निश्‍चित ही उसके पास बहुत सारे प्रश्‍न थे। एक बड़े विद्वान के पास होते ही हैं ढेर सारे प्रश्‍न, समस्‍याएं ही समस्‍याएं।

बुद्ध ने उसके चेहरे की तरफ देखा और कहा, मौलुंकपुत्र, एक शर्त है। यदि तुम शर्त पूरी करो,केवल तभी मैं उत्तर दे सकता हूं। मैं देख सकता हूं तुम्‍हारे सिर में भनभनाते प्रश्‍नों को। एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो। ध्‍यान करो,मौन रहो। तब तुम्‍हारे भीतर का शोरगुल समाप्‍त हो जाए, जब तुम्‍हारी भीतर की बातचीत रूक जाए,तब तुम कुछ भी पूछना और मैं उत्तर दूँगा। यह मैं वचन देता हूं।

मौलुंकपुत्र कुछ चिंतित हुआ—एक वर्ष, केवल मौन रहना, और तब यह व्‍यक्‍ति उत्तर देगा। और कौन जाने कि वे उत्तर सही भी हो या नहीं? तो हो सकता है एक वर्ष बिलकुल ही बेकार जाए। इसके उत्तर बिलकुल व्‍यर्थ भी हो सकते है। क्‍या करना चाहिए? वह दुविधा में पड़ गया। वह थोड़ा झिझक भी रहा था। ऐसी शर्त मानने मे; इसमें खतरा था।

तभी बुद्ध का एक दूसरा शिष्‍य, सारिपुत्र, जोर जोर से हंसने लगा। वह वहीं पास में ही बैठा था—एकदम खिलखिला कर हंसने लगा। मौलुंकपुत्र और भी परेशान हो गया; उसने कहा,बात क्‍या है? क्‍यों हंस रहे हो तुम?

सारिपुत्र ने कहा, इनकी मत सुनना। ये बहुत धोखेबाज है। इन्‍होंने मुझे भी धोखा दिया। जब मैं आया था। तुम्‍हारे तो केवल पांच सौ शिष्‍य है। मेरे पाँच हजार शिष्य थे । मैं बड़ा ब्राह्मण था, देश में भी मेरी ख्‍याति थी। इन्‍होंने फुसला लिया मुझे; इन्‍होंने कहा, साल भर प्रतीक्षा करो। मौन रहो। ध्‍यान करो। और फिर पूछना और मैं उत्तर दूँगा। और साल भर बाद कोई प्रश्‍न ही नहीं बचा। तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं और इन्‍होंने कोई उत्तर दिया ही नहीं।

यदि तुम पूछना चाहते हो तो अभी पूछ लो, मैं इसी चक्‍कर में पड़ गया। मुझे इसी तरह इन्‍होंने धोखा दिया।

बुद्ध ने कहा, मैं पक्‍का रहूंगा अपने वचन पर। यदि तुम पूछते हो, तो मैं उत्तर दूँगा। यदि तुम पूछो ही नहीं,तो मैं क्‍या कर सकता हूं?

एक वर्ष बीता, मौलुंकपुत्र ध्‍यान में उतर गया। और-और मौन होता गया—भीतर की बातचीत समाप्‍त हो गई। भीतर का कोलाहल रूक गया। वह बिलकुल भूल गया कि कब एक वर्ष बीत गया। कौन फिक्र करता है? जब प्रश्‍न ही न रहें, तो कौन फिक्र करता है उत्तरों की? एक दिन अचानक बुद्ध ने पूछा, ‘’यह अंतिम दिन है वर्ष का। इसी दिन तुम यहां आए थे एक वर्ष पहले। और मैंने वचन दिया था तुम्‍हें कि एक वर्ष बाद तुम जो पूछोगे, मैं उत्तर दूँगा, मैं उत्तर देने को तैयार हूं। अब तुम प्रश्न पूछो।

मौलुंकपुत्र हंसने लगा,और उसने कहा,आपने मुझे भी धोखा दिया। वह सारिपुत्र ठीक कहता था। अब कोई प्रश्‍न ही नहीं रहा पूछने के लिए। तो मैं क्‍या पुछूं? मेरे पास पूछने के लिए कुछ भी नहीं है।

असल में यदि तुम सत्‍य नहीं हो तो समस्‍याएं होती है। और प्रश्‍न होते है। वे तुम्‍हारे झूठ से पैदा होते है—तुम्‍हारे स्‍वप्‍न, तुम्‍हारी नींद से वे पैदा होते है। जब तुम सत्‍य, प्रामाणिक मौन समग्र होत हो—वे तिरोहित हो जाते है।

मेरी समझ ऐसी है कि मन की एक अवस्‍था है, जहां केवल प्रश्न होते है; और मन की एक अवस्‍था है, जहां केवल उत्तर होते है। और वे कभी साथ-साथ नहीं होती। यदि तुम अभी भी पूछ रहे हो, तो तुम उत्तर नहीं ग्रहण कर सकते। में उत्तर दे सकता हूं लेकिन तुम उसे ले नहीं सकते। यदि तुम्‍हारे भीतर प्रश्‍न उठने बंद हो गये है, तो कोई जरूरत नहीं है मुझे उत्तर देने की: तुम्‍हें उत्तर मिल जाता है। किसी प्रश्‍न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्‍था उपलब्‍ध करनी होती है जहां कोई प्रश्‍न नहीं उठते। मन की प्रश्न रहित अवस्‍था ही एक मात्र उत्तर है।

यही तो ध्‍यान की पूरी प्रक्रिया है: प्रश्‍नों को गिरा देना, भीतर चलती बातचीत को गिरा देना। जब भीतर की बातचीत रूक जाती है। तो एक असीम मौन छा जाता है। उस मौन में हर चीज का उत्तर मिल जाता है। हर चीज सुलझ जाती है—शब्‍दिक रूप से नहीं, आस्तित्वगत रूप में सुलझ जाती है। कहीं कोई समस्‍या नहीं रह जाती है।

♠ ईश्वर का खेल ♠

।।।। सत्य कथा ।।।।

एक बार की बात है एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा तब जिस व्यक्ति ने जिस वस्तु को हाथ ल गा दिया वह वस्तु उसकी हो जाएगी ! इस घोषणा को सुनकर सभी नगरवासी रात को ही नगर के दरवाज़े पर बैठ गए और सुबह होने का इंतजार करने लगे ! सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं अमुक वस्तु को हाथ लगाऊंगा !

कुछ लोग कहने लगे मैं तो स्वर्ण को हाथ लगाऊंगा , कुछ लोग कहने लगे कि मैं कीमती जेवरात को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग घोड़ों के शौक़ीन थे और कहने लगे कि मैं तो घोड़ों को हाथ लगाऊंगा , कुछ लोग हाथीयों को हाथ लगाने की बात कर रहे थे , कुछ लोग कह रहे थे कि मैं दुधारू गौओं को हाथ लगाऊंगा , कुछ लोग कह रहे थे कि राजा की रानियाँ बहुत सुन्दर है मैं राजा की रानीयों को हाथ लगाऊंगा , कुछ लोग राजकुमारी को हाथ लगाने की बात कर रहे थे ! कल्पना कीजिये कैसा अद्भुत दृश्य होगा वह !!

उसी वक्त महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगाने दौड़े ! सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगा दूँ ताकि वह वस्तु हमेशा के लिए मेरी हो जाएँ और सबके मन में यह डर भी था कि कहीं मुझ से पहले कोई दूसरा मेरी मनपसंद वस्तु को हाथ ना लगा दे !

राजा अपने सिंघासन पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था ! कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था और कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था ! उसी समय उस भीड़ में से एक छोटी सी लड़की आई और राजा की तरफ बढ़ने लगी ! राजा उस लड़की को देखकर सोच में पढ़ गया और फिर विचार करने लगा कि यह लड़की बहुत छोटी है शायद यह मुझसे कुछ पूछने आ रही है ! वह लड़की धीरे धीरे चलती हुई राजा के पास पहुंची और उसने अपने नन्हे हाथों से राजा को हाथ लगा दिया ! राजा को हाथ लगाते ही राजा उस लड़की का हो गया और राजा की प्रत्येक वस्तु भी उस लड़की की हो गयी !

→ जिस प्रकार उन लोगों को राजा ने मौका दिया था और उन लोगों ने गलती की ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी हमे हररोज मौका देता है और हम हररोज गलती करते है ! हम ईश्वर को हाथ लगाने अथवा पाने की बजाएँ ईश्वर की बनाई हुई संसारी वस्तुओं की कामना करते है और उन्हें प्राप्त करने के लिए यत्न करते है पर हम कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि यदि ईश्वर हमारे हो गए तो उनकी बनाई हुई प्रत्येक वस्तु भी हमारी हो जाएगी !

→ ईश्वर बिलकुल माँ की तरह ही है , जिस प्रकार माँ अपने बच्चे को गोदी में उठाकर रखती है कभी अपने से अलग नहीं होने देती ईश्वर भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही खेल खेलते है ! जब कोई बच्चा अपनी माँ को छोड़कर अन्य खिलौनों के साथ खेलना शुरू कर देता है तो माँ उसे उन खिलौनों के खेल में लगाकर अन्य कामों में लग जाती है ठीक इसी प्रकार जब हम ईश्वर को भूलकर ईश्वर की बनाई हुई वस्तुओं के साथ खेलना शुरू कर देते है तो ईश्वर भी हमे उस माया में उलझाकर हमसे दूर चले जाते है पर कुछ बुद्धिमान मनुष्य ईश्वर की माया में ना उलझकर ईश्वर में ही रमण करते है और उस परम तत्व में मिल जाते है फिर उनमें और ईश्वर में कोई भेद नहीं रहता ! इसी बात को गुरु ग्रन्थ साहिब में इन शब्दों में कहा गया है –
” जाके वश खान सुलतान , ताके वश में सगल जहान “
अर्थ – जिसके वश में ईश्वर होते है उसके वश में सारी दुनियाँ होती है !

♠ ईश्वर के दर्शन ♠

एक नदी के किनारे एक महात्मा रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने आते थे।

एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला- “महाराज! मैं लंबे समय से ईश्वर की भक्ति कर रहा हूं, फिर भी मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं होते। कृपया मुझे उनके दर्शन कराइए।“

महात्मा बोले- “तुम्हें इस संसार में कौन सी चीजें सबसे अधिक प्रिय हैं?”

व्यक्ति बोला- “महाराज! मुझे इस संसार में सबसे अधिक प्रिय अपना परिवार है और उसके बाद धन-दौलत।“

महात्मा ने पूछा- “क्या इस समय भी तुम्हारे पास कोई प्रिय वस्तु है?”

व्यक्ति बोला- “मेरे पास एक सोने का सिक्का ही प्रिय वस्तु है।“

महात्मा ने एक कागज पर कुछ लिखकर दिया और उससे पढ़ने को कहा। कागज देखकर व्यक्ति बोला- “महाराज! इस पर तो ईश्वर लिखा है।“

महात्मा ने कहा- “अब अपना सोने का सिक्का इस कागज के ऊपर लिखे‘ईश्वर’शब्द पर रख दो।“

व्यक्ति ने ऐसा ही किया। फिर महात्मा बोले- “अब तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”

वह बोला- “इस समय तो मुझे इस कागज पर केवल सोने का सिक्का रखा दिखाई दे रहा है।“

महात्मा ने कहा- “ईश्वर का भी यही हाल है। वह हमारे अंदर ही है, लेकिन मोह-माया के कारण हम उसके दर्शन नहीं कर पाते। जब हम उसे देखने की कोशिश करते हैं तो मोह-माया आगे आ जाती है। धन-संपत्ति, घर-परिवार के सामने ईश्वर को देखने का समय ही नहीं होता। यदि समय होता भी है तो उस समय जब विपदा होती है। ऐसे में ईश्वर के दर्शन कैसे होंगे?”

महात्मा की बातें सुनकर व्यक्ति समझ गया कि उसे मोह-माया से निकलना है।

♠ સાચો મનુષ્ય ♠

દક્ષિણ ભારતના એક પ્રાંતમાં  વિશાળ મંદિર હતું.તે મંદિરના મુખ્ય પૂજારીનું અવસાન થતાં મંદિરના અન્ય મહંતે બીજા પૂજારીની નિમણૂંક કરવાની ઘોષણા કરાવી.તેણે જણાવ્યું કે કાલે સવારે જે પ્રથમ પહોરમાં આવીને પૂજા વિશેના જ્ઞાનમાં સિદ્ધ સાબિત થશે તેને પૂજારી જાહેર કરાશે.

આ ઘોષણા સાંભળીને અનેક બ્રાહ્મણો સવારે મંદિરમાં આવી ગયાં.મંદિર પહાડ પર હતું અને ત્યાં પહોંચવાનો માર્ગ કાંટા અને પથ્થરોથી ભરેલો હતો.માર્ગની આ જટિલતાનું કોઇપણ રીતે નિવારણ લાવીને બ્રાહ્મણો મંદિરમાં પહોંચ્યાં.

મહંતે બધાને કેટલાંક પ્રશ્નો અને મંત્ર પૂછયાં.જ્યારે પરીક્ષા પૂરી થઇ ત્યારે એક યુવાન બ્રાહ્મણ ત્યાં આવ્યો.તે પરસેવાથી લથબથ હતો અને તેના કપડા પણ ફાટી ગયાં હતાં.મહંતે તેને કારણ પૂછ્યું તો તે બોલ્યો, '' ઘરેથી તો વહેલો જ નિકળ્યો હતો પણ રસ્તામાં કાંટા અને પથ્થરો જોયાં તો તેને કાઢવા લાગ્યો જેથી ભક્તોને તકલીફ ન પડે.તેના કારણે મોડું થઇ  ગયું.''

મહંતે તેને પૂજાવિધિ પૂછી જે તેણે જણાવી.મહંતે પછી તેને મંત્ર વિશે પૂછયું તો તેણે જણાવ્યું કે ભગવાનને નવડાવા અને ખવડાવવા માટેના મંત્રો હોય છે તેની મને જાણ નથી.મહંત બોલ્યા,પૂજારી તો તું બની ગયો,મંત્રો હું તને શિખવી દઇશ.

આ સાંભળીને અન્ય બ્રાહ્મણોએ નારાજગી દર્શાવી.ત્યારે મહંત બોલ્યાં,પોતાના સ્વાર્થની વાત તો પશું પણ જાણે છે,પણ સાચો મનુષ્ય એ છે જે બીજાના દુ:ખ માટે પોતાનાં સુખ છોડી દે.

સાર એટલો જ છે કે જ્ઞાન અને અનુભવ વૈયક્તિક છે જ્યારે માનવતા હંમેશા પરગજુ હોય છે, તેથી તે સતત સમાજ કલ્યાણમાં જ વ્યસ્ત હોય છે.

♠ કઠિયારાનું આયોજન ♠

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એકવાર રાજાભોજ નદી કિનારે લટાર મારતા હતા. આજુ-બાજુ લીલુછમ્મ ઘાસ, ખળખળ વહેતી નદી, વૃક્ષો, હવામાં લહેરાતા ફૂલો... રાજા આનંદિત થઈ ગયા. તેવામાં તેમની નજર એક કઠિયારા પર પડી. માથા પર લાકડાનો ભારો મૂકેલો હતો. તડકામાં વજન ઉપાડીને આવતો હતો છતાં તે ખુશ દેખાતો હતો, આનંદમાં હોય તેમ ધીમે-ધીમે કંઈક ગાતો-ગાતો જતો હતો. રાજાએ તેને પૂછયું, 'તું કોણ છે?'

કઠિયારો બોલ્યો, 'હું અહીંનો રાજા છું'

રાજાને નવાઈ લાગી. તેમણે પોતાની ઓળખાણ છૂપાવી અને તેના વિશે વધુ જાણવા વાતો કરવા લાગ્યા. તેણે કઠિયારાને પૂછયું, 'તું કેટલું કમાય છે? તું તારી આવકથી ખુશ છે?'

કઠિયારો બોલ્યો, 'હું રોજના છ પૈસા કમાઉ છું અને હું બહું ખુશ છું'

રાજાએ વિચાર્યું કે મારા ખજાનામાં અઢળક નાણું, સોના મહોર પડેલી છે છતાં મને કેટલા પ્રશ્નો છે અને આ કઠિયારો રોજના છ પૈસામાં ખુશ કેવી રીતે રહેતો હશે?

કઠિયારો તેમના મનમાં ચાલતા વિચાર સમજી ગયો હોય તેમ બોલ્યો, 'જુઓ, તમને વિશ્વાસ નથી આવતો ને? તો હું તમને સમજાવું. છ પૈસામાંથી એક પૈસો હું રોકાણકારને આપું છું. એક મારા મિનિસ્ટરને, એક મારા લેણિયાતોને, એક મારા બેંક ખાતામાં જમા કરું છું, એક મહેમાન માટે રાખું છું અને એક મારા માટે રાખું છું.'

રાજાને કઠિયારીની વાત સમજાય નહીં તેમના ચહેરા પરના ભાવ કઠિયારો સમજી ગયો અને કહ્યું, 'ચલો તમને સમજાવું, મારા માતા-પિતા મારા રોકાણકાર છે. તેમણે મને મોટો કર્યાે, ધંધો કરતા શીખડાવ્યું એટલે એક પૈસો તેમને આપું છું, એક પૈસો મારા મિનિસ્ટર એટલે કે મારી પત્નીને આપું છું, કારણ કે તે ઘર ચલાવે છે અને બધાનું ધ્યાન રાખે છે. મારા બાળકો એ મારા લેણિયાત કહેવાય. તેમના માટે એક પૈસાનો ખર્ચ કરું છું. પછી રોજ એક પૈસો ભવિષ્ય માટે બચાવું છું. કારણ કે જે ભવિષ્યનો વિચાર ન કરે તે દુઃખી થાય. પછી એક પૈસો મારા ઘરમાં આવતા મહેમાન માટે રાખુ છું જેથી કયારેક મહેમાન આવે તો સારી રીતે રાખી શકું અને એક પૈસો મારા મોજ-શોખ માટે જુદો રાખુ છું.'

રાજા તો ગરીબ કઠિયારાની વાતો સાંભળીને છક થઈ ગયા. તેમને સમજાય ગયંુ કે ખરેખરું સુખ માત્ર સંપત્તિથી નથી મળતું, આપણી પાસે જે કંઈ છે તેને સરખી રીતે વાપરવાથી સાચો આનંદ મળે છે.

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