♠ वेतन पर वतन की महत्ता ♠

एक विघालय के छात्रों ने जब सुना कि उनके प्रिय शिक्षक विद्यालय छोड़कर जा रहे हैं तो उनके बीच खलबली मच गई। छात्र उन्हे बहुत चाहते थे। कारण यह कि वे छात्रों को न केवल अपने विषय का समुचित ज्ञान देते, बल्कि अन्य विषयों में भी कोई परेशानी आने पर उसे तुरंत हल कर देते थे। निर्धन छात्रों के तो वे मसीहा थे। उनकी फीस नियत समय पर जमा कर उन्हें स्कूल से निकाले जाने से वे बचा लिया करते थे। साथ ही उपयोगी पुस्तकों को जरुरतमंद छात्रों के मध्य वितरित कर उनके ज्ञान में वृद्धि भी करते थे। ऐसे शिक्षक का विद्यालय छोड़ना छात्रों के लिए बहुत कष्टदायी था।

छात्र यह जानने के लिए उनके कमरे में गए कि वे क्यो जा रहे हैं?

छात्रो ने पूछा- सर , हमने सुना है कि आप किसी दूसरे विद्यालय में जा रहे हैं।क्या यह सच है? गुरु के हां कहने पर छात्रों ने प्रश्न उठाया-क्या आपको वहां अधिक वेतन मिलेगा?

शिक्षक ने कहा-नहीं, यहां मुझे 710 रुपये मासिक मिलते हैं और वहाँ 350 रुपये मासिक मिलेंगे। चकित छात्रों ने पुनः पूछा-इतना कम वेतन मिलने पर भी आप वहां क्यों जा रहे हैं?

शिक्षक ने उत्तर दिया-वहां मुझे वतन का काम करना हे। वेतन का मेरे लिए कोई आकर्षण नहीं हैं। तभी एक व्यक्ति कमरे में आया। शिक्षक ने बिना कोई सवाल-जवाब किए दराज खोलकर उसे दो हजार रुपए दिए और वह चला गया।

छात्रो ने फिर पूछा-सर , आपने इसे दो हजार रुपय क्यो दिए?

शिक्षक का जवाब था-यह धन देश के लिए दिया गया हैं और यह धन देश का ही हैं। छात्र अपने शिक्षक की देशभक्ति देखकर उनके प्रति श्रद्धानवत हो गए। यह शिक्षक और कोई नहीं, प्रसिद्ध क्रांतिकारी,लेखक,कवि और बाद में महान योगी बने श्री अरविंद घोष थे।

अरविंद घोष का यह देश प्रेम हमें सिखाता है कि राष्ट्र सर्वोपरि होता है और इसीलिए राष्ट्र के लिए किसी भी तरह के बलिदान हेतु तत्पर रहना ताहिए।

‎शिक्षा‬

लोग ऊंचे वेतन के चक्कर में उलझकर वतन के प्रति अपने दायित्व को भूल जाते हैं। यह गाथा वेतन पर वतन की महत्ता को इंगित करती हैं।