♠ बादशाह का अहंकार ♠

एक सम्राट के दरबार में एक अजनबी यात्री घूमता हुआ पहुंचा। उसने सुंदर-सी एक पगड़ी अपने सिर पर बांध रखी थी और एक खूबसूरत पगड़ी हाथ में लिए हुए था। देखने में वह युवक काफी खूबसूरत और आकर्षक व्यक्तित्व का था। उसकी पगड़ी देखते ही राजा ने कहा, ‘‘ऐसी पगड़ी तो बहुत मुश्किल से दिखाई पड़ती है। यह सुंदर पगड़ी आपको कहां से मिली?’’

अजनबी ने कहा, ‘‘मैं तो यह पगड़ी बेचने के लिए ही इस राज दरबार में आया हूं। मैं कई राज दरबारों से वापस आ चुका हूं, यह पगड़ी कोई बादशाह खरीद ही नहीं पाया। मुझे बताया गया कि आप ही यह पगड़ी खरीद सकते हैं।’’

बादशाह ने पूछा, ‘‘आपकी इस पगड़ी की क्या कीमत है?’’

उस युवक ने कहा, ‘‘एक हजार स्वर्ण मुद्राएं।’’
वजीर ने राजा के कान में फुसफुसाते हुए कहा कि, ‘‘महाराज यह तो ठगने का काम कर रहा है। यह साधारण-सी पगड़ी बीस-पच्चीस रुपए से ज्यादा की नहीं है। यह तो लूट रहा है।’’

यह बात वजीर ने कान में ही कही थी लेकिन वह युवक होशियार था। उसने अंदाजा लगा लिया कि वजीर ने राजा से क्या कहा होगा। वहीं खड़े-खड़े उसने बादशाह से कहा, ‘‘हुजूर इसका मतलब मैं यह समझूं कि यह पगड़ी आप नहीं खरीद पाएंगे।’’

बादशाह ने वजीर को बुलाया और कहा, ‘‘वजीर! इस युवक को दो हजार स्वर्ण मुद्राएं दी जाएं और यह पगड़ी खरीद लें।’’

बादशाह के स्वाभिमान की बात थी। एक हजार स्वर्ण मुद्राएं युवक द्वारा मांगी जा रही थीं लेकिन युवक की बातें सुनकर बादशाह का अहं भड़क उठा और उन्होंने कहा, ‘‘जब मेरे नाम पर पगड़ी बेचने आया है तो इसे दो हजार मुद्राएं देकर पगड़ी खरीदी जाए।’’

फिर क्या था, पगड़ी खरीद ली गई। वह अनजान यात्री वजीर से धीरे से बोला, ‘‘महोदय, आपको पगड़ी की कीमत मालूम होगी लेकिन मुझे बादशाहों की कमजोरियां भी मालूम हैं।’’

बादशाहों की कमजोरी उस युवक को मालूम थी। बस, इसीलिए वजीर की सारी सलाह बेकार गई और पच्चीस रुपए की पगड़ी दो हजार स्वर्ण मुद्राओं में खरीद ली गई।

🌹 शिख 🌹

- अहंकार ही मनुष्य की सबसे बडी कमजोरी है l