♠ सुदामा का त्याग ♠



एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी l भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी l एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी l छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले l कुटिया तक पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी l ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी l यह सोंचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपड़े में बाँधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी l

ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये l

इधर उधर बहुत ढूँढा चोरों को वह चनों की बँधी पोटली मिल गयी चोरों ने समझा इसमे सोने के सिक्के हैं इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी l गाँव के सारे लोग चोरों को पकड़ने के लिए दौडे l चोर वह पोटली लेकर भागे l पकड़े जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये l (संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे)

गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढ़ी। चोर डर गये और आश्रम से भागे l भागते समय चोरों से वह पोटली वहीं छूट गयी. इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि '' मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा ”

उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू लगाने लगी झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमे चने थे l सुदामा जी और श्रीकृष्ण जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे l

गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी और कहा '' बेटा ! जब वन मे भूख लगे तो दोनों लोग यह चने खा लेना l सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे l ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ मे ली त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालूम हो गया l ''

सुदामा जी ने सोंचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग बराबर बाँट के खाना. लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी I मै ऐसा नही करुँगा मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा I मै ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए l दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया l